Tuesday, February 15, 2011

आरुषि हत्याकांड : कमजोर हुई सीबीआई

सारी जांच एजेंसियों के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो के हाथ खड़े करने के बावजूद अदालत ने अगर आरुषि हत्याकांड मामले को जिंदा रखा है, तो यह स्वागतयोग्य फैसला है। जांच एजेंसियों के घालमेल और मुजरिमों की अत्यधिक चालाकी से मामला जरूर ऐसी जगह पहुंच गया है कि हत्यारों की पहचान और सजा देना आसान नहीं रहेगा, लेकिन जिस तरह से सीबीआई मामले को रफा-दफा करने जा रही थी, वह तो और भी गलत था। ब्यूरो ने अपनी जांच से शक की सूई तलवार दंपति की तरफ मोड़कर भी यही कह दिया कि वह जांच आगे बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। ब्यूरो और उसके पहले उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बार-बार रुख बदलने और जांच की दिशा उलटने-पलटने से केस कमजोर जरूर हो गया है।

तलवार दंपति ने भी जाने-अनजाने काफी सारे सुबूत मिटाए और उनकी सूचना पर जांच ‘गुमराह’ भी हुई। कई बार तो साफ लगा कि अपने नौकर हेमराज के साथ पड़ोस के तीन नौकरों को फंसाने का प्रयास किया गया। पर अब अदालत के फैसले के बाद ये तीनों चैन की सांस ले सकेंगे और उनके ऊपर आई कालिख भी काफी हद तक धुल गई है। उन लोगों के दोषी या निर्दोष होने का मसला भी बड़ा था, लेकिन मुख्य बात इस 14 वर्षीय किशोरी की मौत की है। उसकी मौत और जांच के सारे प्रकरण को दोहराने की जरूरत नहीं है, लेकिन जिन नौ मुद्दों को अदालत ने महत्वपूर्ण मानकर मुकदमा चलाने लायक माना है, वे पर्याप्त वजनदार हैं। इनके आधार पर सुबूत नष्ट करने, अपराध के लिए साजिश रचने जैसे मामले तो ठहरेंगे ही और फिर हत्या के पीछे की मंशा भले अस्पष्ट लगे, हत्या का मामला बनेगा ही, क्योंकि कोई यों ही सुबूत नष्ट नहीं करेगा।

यह काम उस लड़की के यौनांगों की सफाई से लेकर कमरे की सफाई, खून लगे कपड़े हटाने, मोबाइल से सूचनाएं निकालने तक गया है। जांच की दिशा को भटकाने का मामला अपनी जगह है। अब ये आधार किसी को सजा दिलाने और आरुषि मामले में न्याय दिलाने का आधार बनेंगे या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगा। पर अदालत के ताजा फैसले के बाद चीजें वापस पटरी पर आई हैं। सीबीआई भले ही इसे अपनी ‘जीत’ बताए, असल में यह उसके कामकाज पर एक गंभीर टिप्पणी है और उसे नए सिरे से जांच और अदालती कामकाज को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगना होगा। अब उसके लिए कोई अगर-मगर करना भी मुश्किल होगा, क्योंकि सारे मुल्क की निगाहें उस पर लगी हुई हैं। तलवार दंपती के लिए बचाव के सारे रास्ते बंद हो गए हों या वे ही अपनी बेटी के हत्यारे घोषित हो गए हों, यह मानना गलत होगा। पर इसमें कोई शक नहीं कि अब उन लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं।

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