Wednesday, November 21, 2012

भारत-चीन युद्व के 50 साल,,,,, शहीदों को नमन ,,, नेहरू की गलतियों पर धिक्कार


आज से पचास साल पहले 28 दिनों तक चले भारत-चीन युद्ध में 3824 बहादुर जवानों ने अपनी जान गंवा दी थी। युद्ध की 50वीं वर्षगांठ पर विश्लेषकों ने राजनीतिक और सैन्य गलतियों को रेखांकित किया है, इनमें चीन की राजनीतिक पार्टी पर किया गया गैरजिम्मेदाराना भरोसा, तत्कालीन सरकार तथा सैन्य प्रतिष्ठान की विफलता और रक्षा मंत्री व शीर्ष सैन्य अधिकारियों की अक्षमता पर सवाल उठाए गए थे, किंतु इस युद्ध को भारतीय जवानों के शौर्य के लिए याद किया जाएगा। पुराने, जंग लगे हथियारों और अक्षम राजनेताओं और जनरलों के गलत फैसलों के बावजूद भारतीय सैनिकों ने चीन का जबरदस्त प्रतिरोध किया। भीषण युद्ध में अनेक जगहों पर भारतीय जांबाजों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए चीन को एक-एक इंच जमीन के लिए जबरदस्त टक्कर दी। हममे से बहुत से लोग आज नहीं जानते, किंतु हमारी पीढि़यों को यह जानना ही चाहिए कि भारत को इस युद्ध की क्या कीमत चुकानी पड़ी। युद्ध में भारी खूनखराबा हुआ, अनेक परिवार तबाह हो गए। तमाम लड़ाइयों में भारतीय जांबाजों की शौर्य गाथाएं हैं। भारतीय सैनिकों ने मरते दम तक अपने कर्तव्य का पालन किया, जबकि उनके ऊपर जितने चैनल थे वे सभी अपने कर्तव्य पालन में पूरी तरह विफल रहे। सैनिकों को अनेक शौर्य पुरस्कारों से नवाजा गया। 13 कुमाओनात रेजांग दर्रा (लद्दाख) की सी कंपनी आखिरी सैनिक और आखिरी गोली तक लड़ती रही। 1 सिख प्लाटून अरुणाचल प्रदेश में तोपलेंट दर्रा में एक पहाड़ी की रक्षा के लिए तब तक चीनियों पर गोलियां बरसाती रही जब तक गोलियां खत्म नहीं हो गई। इसके बाद आखिरी आत्मघाती प्रयास में सैनिकों ने बंदूकों के आगे लगी संगीनों से चीनी सैनिकों पर हमला बोल दिया। उनकी इस जांबाजी को कभी भूला नहीं जा सकता। इन टुकडि़यों का नेतृत्व करने वाले मेजर शैतान सिंह और सूबेदार जोगिंदर सिंह को मरणोपरांत परमवीर चक्र सम्मान से नवाजा गया। परमवीर चक्र हासिल करने वाले तीसरे बहादुर थे 8 गोरखा राइफल्स के मेजर धान सिंह थापा। वह लद्दाख में एक शेर की तरह लड़े और हमारा सौभाग्य है कि कहानी बताने के लिए वह जिंदा बच गए। बम दर्रा में एके रॉय के नेतृत्व में 5 असम राइफल्स ने आखिरी दम तक चीन के अनेक हमलों का मुंहतोड़ जवाब दिया। इस प्रकार की अनगिनत कहानियां लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक बिखरी पड़ी हैं। चीन ने बड़ी तेजी के साथ हमला बोला और एक समय ऐसा भी आया जब पूरा असम भारत के हाथ से निकलने का खतरा पैदा हो गया था। अगर आप भारत के नक्शे पर नजर डालें तो इस परिदृश्य की परिकल्पना करना भी कठिन है। असम के बिना भारत ऐसा लगता है जैसे इसका बायां हाथ कट गया हो। चीनी हमले का एक लाभ यह जरूर हुआ कि हमने भोलेपन को तिलांजलि दे दी। लगता है कि हम इस युद्ध और इसमें भाग लेने वाले जांबाज जवानों को भूल गए हैं यानी उन लोगों को जिन्होंने हमारे भविष्य के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर दिया। हमें हमारी सुरक्षा की केंद्रीय कुंजी जवानों की वीरता और शौर्य को नहीं भूलना चाहिए। चाहे जितने भी कबाड़ हथियारों से ये लैस हों या न हों, सही-गलत कैसे भी आदेश इन्हें मिल रहे हों या न मिल रहे हों, ये वीर जवान ही हमारी पहली, आखिरी और एकमात्र सुरक्षा पंक्ति हैं। क्या हम इनके लिए वह सब करते हैं जिसके ये हकदार हैं? क्या हम उन्हें सही ढंग से याद भी करते हैं? कुछ साल पहले एक रिपोर्ट छपी थी कि रेजांग दर्रे की बर्फीली पहाडि़यों पर अपनी जान गंवाने वाले मेजर शैतान सिंह की विधवा को उनकी पात्रता से कहीं कम पेंशन दी जा रही है। इसका जिम्मेदार कौन है? रक्षा लेखा नियंत्रक और बैंक एक दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ रहे हैं। बाकी हम लोग हताशा में अपने कंधे झटका देते हैं। मैं अकसर राजनेताओं और नौकरशाहों को कौटिल्य की प्रसिद्ध उक्ति सुनाता हूं-जिस दिन एक सैनिक अपने बकाया की मांग करने लगे वह दिन मगध के लिए बहुत दुखद होगा। उस दिन से आप एक राजा होने का नैतिक अधिकार गंवा देंगे। राष्ट्र को हमेशा अपने सैनिकों पर गर्व करने के साथ-साथ उनकी परवाह भी करनी चाहिए। 1962 की गलतियों को कभी दोहराया नहीं जाना चाहिए। यह स्पष्ट है कि हमारा वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व हमारे पूर्व सैनिकों की दशा के प्रति बेपरवाह है। पूर्व सैनिकों द्वारा अपने मेडल लौटाने की घटनाओं पर अधिकांश लोगों को शर्म से अपना सिर झुका लेना चाहिए। 3800 बहादुर सिपाहियों की स्मृति और देश के प्रति उनकी अंतिम सेवा की कहानियां हमारी सामूहिक अंतश्चेतना में अंकित हो जानी चाहिए। इंग्लैंड की संसद ने आ‌र्म्ड फोर्सेज कोवेनेंट पारित किया है। इसमें यूनाइटेड किंगडम के लोगों और देश के लिए लड़ने वाले सैनिकों के बीच एक समझौता किया गया है कि सैनिकों के मरने के बाद उनके परिवारों की जिम्मेदारी सरकार उठाएगी। इसी प्रकार का एक बिल मैंने भी संसद में पेश किया है। अभी इस पर चर्चा होनी बाकी है। मैं आशा करता हूं कि इस पर चर्चा होगी और सरकार अगर मेरा नहीं तो इस प्रकार का कोई अन्य प्रस्ताव पारित करेगी। यही 1962 के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। साथ ही इससे भारत की जनता और सशस्त्र बलों के बीच एक नए रिश्ते की शुरुआत भी होगी। रक्षा मंत्री और उनके साथ तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने जिस प्रकार 62 के युद्ध की 50वीं वर्षगांठ पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने की शुरुआत की है वह एक सराहनीय कदम है। इससे संकेत मिलता है कि राष्ट्र अपने सपूतों के बलिदानों को भूला नहीं है। आजकल हमारे नायक क्रिकेटर, फिल्म स्टार और राजनेता बन गए हैं। यह जैसा है वैसा ही रहेगा, लेकिन भारत-चीन युद्ध की 50वीं सालगिरह ने हमें सुअवसर प्रदान किया है कि हम अपने बच्चों को भारत के जांबाजों के किस्से सुनाएं। आज के बच्चों को मेजर धान सिंह थापा, मेजर शैतान सिंह, सुबेदार जोगिंदर सिंह, मेजर पद्मपाणि आचार्य, राइफलमैन सतबीर सिंह, हवलदार अब्दुल हमीद, कैप्टन विक्रम बत्रा, राइफलमैन योगेंद्र यादव और इस प्रकार के अनेक वीरों के बारे में यह जानना ही चाहिए कि किस प्रकार छोटे से गांव या कस्बे से आकर उन्होंने देश की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान की और अपने पीछे बिलखते परिजनों को छोड़ गए। इन कहानियों को हमारी नई पीढ़ी को प्रेरणाFोत बनने देना चाहिए और अपने वीर सपूतों और उनके परिवार को याद करते हुए हमें अपना सिर झुकाकर उन्हें सलाम करना चाहिए।

Thursday, May 24, 2012

.........कि देश से बीमारी समाप्त हो जायेगी ।



पूरे देश में शोर है कि लोकपाल लाओ, लोकपाल लाओ, किन्तु क्या कोई यह बता सकता है कि ‘क्या लोकपाल’ से देश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा ?
जहां तक हमारा मानना है , नहीं !
कारण, क्या आज हमारे पास एक भी व्यक्ति ऐसा है जिसको हम सौ प्रतिशत ईमानदार मानते हों । भले ही वह हमारा भाई हो, पिता हो या अन्य कोई करीबी सम्बंधी उसकी ईमानदारी पर भी हम सौ प्रतिशत भरोसा नहीं कर सकते ।
माना लोकपाल आ गया, लागू भी हो गया, क्रियान्वयन हो रहा है, किन्तु लोकपाल का डांचा (बाॅडी) में भ्रष्टाचारी लोग हैं तब तो संभवतः लोकपाल से भ्रष्टाचार में और अधिक इजाफा होगा ।
जहां तक मेरा मानना है , देश में कानून हैं जो भ्रष्टाचार को रोक सकते हैं आवश्यकता मात्र इस बात की है कि इनको सख्ती से लागू किया जाये । विशेषकर सरकारी मशीनरी में आरक्षण के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता और कर्मठता के आधार पर लोगों का चयन होना चाहिये ।
उदाहरण - मान लीजिए कि एक व्यक्ति हाई स्कूल से परास्नातक तक 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है और एक व्यक्ति 60 प्रतिशत । जो व्यक्ति  60 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है वह डाक्टर और इंजीनियर बन जाता है और जो 90 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है उसको अपनी योग्यता दिखाना का अवसर ही नहीं मिलता । स्पष्ट है कि जो 60 प्रतिशत अंक प्राप्त कर डाक्टर बन गया है वह इलाज भी 60 प्रतिशत स्वास्थ्य लाभ वाला ही करेगा, ऐसे में हम कैसे मान सकते हैं कि देश से बीमारी समाप्त हो जायेगी ।

Friday, May 27, 2011

प्‍यार, दोस्‍ती, समर्पण मानव जीवन के परमार्थ जिंदगी के प्रयोजन के लिए है

प्‍यार, दोस्‍ती, समर्पण मानव जीवन के परमार्थ
जिंदगी के प्रयोजन के लिए है
प्‍यार हमें मौत से नहीं लेकिन जीवन को परिपूर्ण बनायेगा
मौत जीवन के लिए दीर्घ विराम
यहॉं आत्‍मा सौंदर्य को अपनाकर
अंधेरों से हमें उजाले की ओर ले जाती ।
जिंदगानिया चल रही है ये रवानिया चल रही है किस करिश्‍मों से
दुनिया चल रही है, गम के मारे लाखों सयाने भटक रहे हैं आवारा बनके
लेकिन कुदरत का करिश्‍मा कोई न जाने
यह सिलसिला सदियों से चल रहा
किसके करिश्‍मों से
ये दुनिया चल रही है
फूल और काटा
बाप और बेटा
चले रहे आशा निराशा की राह पर
अनजाने से है ये सब तमाशा
जीवन-मरण का ये कारवा चल रहा है
ये किसके करिश्‍मों से
यह दुनिया चल रही है
चल रही है ये जीवन की कश्‍ती
मकसद से न देखा किसीन ने यह रवैय्या ।
कैसे यह चक्‍कर चल रहा है
किस करिश्‍मों से यह दुनिया चल रही है
अजब है ये जीवन
गजब है यह दुनिया
न मंजिल है न ठिकाना
न मकसद न फसाना न
फिर किसके लिए यह कारवां चल रहा है
किस करिश्‍मों से यह दुनियां चल रही है

Tuesday, May 10, 2011

भारत तुझको नमस्कार है।


भारत तुझसे मेरा नाम है,
भारत तू ही मेरा धाम है।
भारत मेरी शोभा शान है,

भारत मेरा तीर्थ स्थान है।
भारत तू मेरा सम्मान है,
भारत तू मेरा अभिमान है।
भारत तू धर्मों का ताज है,
भारत तू सबका समाज है।
भारत तुझमें गीता सार है,
भारत तू अमृत की धार है।
भारत तू गुरुओं का देश है,
भारत तुझमें सुख संदेश है।
भारत जबतक ये जीवन है,
भारत तुझको ही अर्पण है।
भारत तू मेरा आधार है,
भारत मुझको तुझसे प्यार है।
भारत तुझपे जां निसार है,
भारत तुझको नमस्कार है।

Tuesday, March 22, 2011

मैंने मौत को बहुत नजदीक से देख लिया है ! मै अपने यह अनुभव आप सभी को बताना चाहता हूँ !


मौत से मुलाकात हुई है मेरी ! मैंने मौत को बहुत नजदीक से देख लिया है ! 
मै अपने यह अनुभव आप सभी को  बताना चाहता हूँ !
..........................
बात 17  मार्च 2011  की है ,  इस दिन छोटी "होली" थी ! मै रात में 12  बजे अपनी "बुलट" मोटर साईकिल से बदायूं से बीसलपुर को चल दिया था ! मेरा छोटा भाई मोटर साईकिल चला रहा था , मै और मेरा एक मिलने बाला पीछे बैठे थे ! रात में करीब 2 बजे बरेली पार करने बाद मोटर साईकिल 80 -90  की स्पीड से रोड के किनारे २० फिट गहरी खाई में जा गिरी ! रात में करीब 2 बजे हमारे आसपास कोई नही था जो कोई मदद करे ! हम लोग बहुत संकट में थे ! क्या करें क्या न करें ! मोटर साईकिल का हेंनडल टूट चुका था ! रात में करीब 2 बजे सिर्फ सननाटा था ! मौत हमारे बहुत नजदीक से गुजरी थी !
मोटर साईकिल जहाँ गिरी थी वहाँ पर कैलासो नदी थी ! रात में करीब 2 बजे हमारे आसपास कोई नही था मोटर साईकिल को कैसे निकला जाये !!!!! लेकिन हम लोग हिम्मत नही हारे करीब 1  घंटे में मोटर साईकिल को निकाल ही लिया ! भागवान ने मेरी और मेरी भाई की रक्षा की !!!!! मोटर साईकिल में बहुत नुकसान हुआ !
हम लोग सुबह को करीब ४ बजे बीसलपुर पहुचे ! अपने मामा के घर बो लोग भी दंग रह गये ! उस समय तो हम लोग सो गये ! सुबह जब ९ कट्स सो कर उठे तो देखा की  साईकिल का हेंनडल टूट चुका था ! पता नही कैसे हम लोग बीसलपुर मामा के घर तक आ गये ! हम लोग को चोट भी लगी लेकिन बच ही गये ! 
यह मेरी एक बहुत बड़ी गलती थी , मुझे रात में नही जाना चाहिये था !
मै इसको अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती मानता हूँ !

Thursday, March 10, 2011

क्यों और कैसे किए जाते हैं 16 संस्कार


गर्भाधान संस्कार- यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान के लिए गर्भधारण किस प्रकार करें इसका विवरण दिया गया है। इस संस्कार से कामुकता का स्थान अच्छे विचार ले लेते हैं। यह वैज्ञानिक स्तर पर भी साबित किया जा चुका है। पुंसवन संस्कार- यह संस्कार गर्भधारण के दो-तीन महीने बाद किया जाता है। मां अपने गर्भस्थ शिशु की ठीक से देखभाल करने योग्य बनाने के लिए यह संस्कार किया जाता है। पुंसवन संस्कार के दो प्रमुख लाभ- पुत्र प्राप्ति और स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान है। सीमन्तोन्नयन संस्कार- यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्च सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म आएं, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। भक्त प्रह्लाद और अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। जातकर्म संस्कार- बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से गर्भस्त्रावजन्य दोष दूर होते हैं। नालछेदन के पूर्व अनामिका अंगूली (तीसरे नंबर की) से शहद, घी और स्वर्ण चटाया जाता है। नामकरण संस्कार- जन्म के बाद ११वें या सौवें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। ब्राrाण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है। बच्चे को शहद चटाकर सूर्य केदर्शन कराए जाते हैं। उसके नए नाम से सभी लोग उसके स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। निष्क्रमण संस्कार- निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। अन्नप्राशन संस्कार- गर्भ में रहते हुए बच्चे के पेट में गंदगी चली जाती है, उसके अन्नप्राशन संस्कार बच्चे को शुद्ध भोजन कराने का प्रसंग होता है। बच्चे को सोने-चांदी के चम्मच से खीर चटाई जाती है। यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात ६-७ महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है। मुंडन संस्कार- बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे वपन क्रिया संस्कार, मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। कर्णवेध संस्कार इसका अर्थ है- कान छेदना। परंपरा में कान और नाक छेदे जाते थे। यह संस्कार जन्म के छह माह बाद से लेकर पांच वर्ष की आयु के बीच किया जाता था। यह परंपरा आज भी कायम है। इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। उपनयन संस्कार उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रrा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। फिर हर सूत्र के तीन-तीन सूत्र होते हैं। ये सब भी देवताओं के प्रतीक हैं। आशय यह कि शिक्षा प्रारंभ करने के पहले देवताओं को मनाया जाए। जब देवता साथ होंगे तो अच्छी शिक्षा आएगी ही। विद्यारंभ संस्कार जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। शिक्षा का शुरू होना ही विद्यारंभ संस्कार है। गुरु के आश्रम में भेजने के पहले अभिभावक अपने पुत्र को अनुशासन के साथ आश्रम में रहने की सीख देते हुए भेजते थे। केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करे। समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम में शिक्षा प्राप्ति के बाद ब्रrाचारी को फिर दीन-दुनिया में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रrाचारी को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षो के लिए तैयार करना। विवाह संस्कार  यानी विशेष रूप से, वहन यानी ले जाना। विवाह का अर्थ है पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने घर ले जाना। सनातन धर्म में विवाह को समझौता नहीं संस्कार कहा गया है। यह धर्म का साधन है। दोनों साथ रहकर धर्म के पालन के संकल्प के साथ विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है। विवाहाग्नि संस्कार विवाह के पहले तक पिता द्वारा जलाई गई अग्नि में आहूति दी जाती थी। विवाह के साथ ही व्यक्ति स्वयं अपनी अग्नि घर में प्रज्‍जवलित करता था। पति-पत्नी दोनों सुबह, दोपहर और शाम को इसमें घी और दूध की आहूति देते थे। विवाह के बाद अपनी अलग अग्नि जलाने का अर्थ है अपना अलग चूल्हा करना। यानी अपनी जिम्मेदारियां स्वयं उठाना। आज भी घर का बंटवारा होने का मतलब दो चूल्हे होना लिया जाता है। अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम यज्ञ। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है। मृत्यु के साथ ही व्यक्ति स्वयं इस अंतिम यज्ञ में होम हो जाता है। हमारे यहां अंत्येष्टि को इसलिए संस्कार कहा गया है कि इसके माध्यम से मृत शरीर नष्ट होता है। इससे पर्यावरण की रक्षा होती है।

Friday, February 25, 2011

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा संकट हिंदू ही झेल रहे हैं।

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा संकट हिंदू ही झेल रहे हैं। मानवाधिकार संबंधी एक नई रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश, पाकिस्तान, मलेशिया और सऊदी अरब सहित दुनियाभर के कई देशों में रहने वाले हिंदू रोजाना भेदभाव, पीड़ा और खतरे के साए में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
स्वयंसेवी संगठन ‘हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन’ (एचएएफ) द्वारा आज यहां जारी की गई ‘दक्षिण एशिया और विदेशों में हिंदू: मानवाधिकार सर्वे 2007’ नामक इस रिपोर्ट में दस देशों में हिंदुओं के जीवन स्तर का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश में सरकार बदलने के बावजूद वर्ष 2007 के पहले छह महीनों में हिंदुओं की हत्या, बलात्कार और मंदिर तोड़ने जैसी 270 घटनाएं दर्ज की गई हैं। वहीं पाकिस्तान में भी हिंदुओं के खिलाफ बंधुआ मजदूरी, अपहरण और महिलाओं के जबरन धर्म परिवर्तन जैसे कई अपराध घटित हुए हैं।
रिपोर्ट को जारी किए जाने के अवसर पर सीनेटर फ्रैंक आर. लाउटेनबर्ग ने कहा, “हम सभी के मूल्य एक समान हैं। हमें सभी लोगों उनकी संस्कृतियों और आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि अभी भी ढेरों कमियां मौजूद हैं”। रिपोर्ट लॉन्गवुड विश्वविद्यालय में संचार विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर रमेश राव के नेतृत्व में तैयार की गई।
हिंदुओं पर अत्याचार के मलेशिया में तमाम उदाहरण है। मसलन मलेशिया के पेराक राज्य के तूपाह एस्टेट में रहने वाले तमिल हिंदुओं ने श्मशान भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित कर दिए जाने का विरोध किया है। विरोध के लिए उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन का सहारा लिया। एस्टेट में रहने वाले एम. मरिमुथु ने दावा किया कि भारतीय समुदाय पिछले 90 सालों से इस भूमि का प्रयोग अपने लोगों के अंतिम संस्कार के लिए कर रहा था। उन्होंने कहा, “कुछ गैरजिम्मेदार किस्म के लोगों ने जमीन पर कब्जा कर लिया है और उसके मालिकाना हक का दावा करने लगे हैं”।

नेपाल तो अब हिंदू राष्ट्र रहा नहीं और मलेशिया में हिंदुओं पर कानूनी अत्याचार भी थमा नहीं है जबकि ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर के नेलसन इलाके के नागरिकों ने स्वामी नारायण संस्था द्वारा प्रस्तावित एक हिन्दू मंदिर के निर्माण का विरोध किया गया। स्थानीय लोगों का तर्क है कि मंदिर के निर्माण के कारण इस क्षेत्र में पार्किग और इमारतों का डिजाइन प्रभावित होगा। इससे पहले इस इलाके में एक मुस्लिम स्कूल के खिलाफ भी लोग एकजुट हो गए थे। संस्था के ट्रस्टी करसन कराई ने बताया कि दरअसल लोग हिन्दू मंदिर को लेकर भ्रमित हैं और फिजूल के सवाल उठा रहे हैं। इस इलाके में हिन्दू मंदिर के निर्माण से स्थानीय सुविधाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

संस्था ने 10 लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की लागत से इस इलाके में एक हिन्दू मंदिर के निर्माण की योजना बनाई है, लेकिन स्थानीय नागरिक मंदिर के डिजाइन और पार्किंग को लेकर इसका विरोध कर रहे है।इससे पहले स्वामी नारायण संस्था कई देशों में भव्य मंदिरों का निर्माण कर चुकी है। गौरतलब है कि लंदन के नेस्डन इलाके में बनाया गया हिन्दू मंदिर ब्रिटिश हिन्दूओं में काफी लोकप्रिय है। हॉल ही में इस संस्था ने अटलांटा और टोरंटो में भी भव्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण किया है।