हिन्दू हिंसक होता तो ..............
तो भारत में मुसलमान नही होते .
तो भारत पर विदेशी हुकूमत नही होती
तो भारत में एक भी मस्जित या चर्च नही होता
तो भारत में कब्रस्तन नही होता
तो भारत अमेरिका से आगे होता
तो भारत खुशाल होता
तो भारत में अपराध नही होता
तो भारत में सोनिया नही होती
तो पाकिस्तान नही होता
तो भारत में गंदगी नही होती
तो भारत में गऊ हत्या नही होती
तो भारत में नारी का सम्मान होता
तो अयोध्या में दिव्य और भव्य राम मंदिर होता
तो ताजमहल में शिव मंदिर होता
तो जामा मस्जित में अखंड रामायण होती
तो काठ मुल्ले दिन में पांच बार चीखते नही
तो कांग्रेस नही होती
तो कश्मीर में हिन्दी पिटता नही
तो भारत में विश्व शक्ति होता
तो भारत में गरीब नही होते
तो भारत में भीड़ नही होती
तो भारत में ...............
शेष ....... आगे
Sunday, December 19, 2010
Saturday, December 4, 2010
अच्छे नागरिक क्यों नहीं बन पा रहे हम
विदेशी तो कहते
भारत का एक बड़ा तबका भी
शिद्दत से महसूस करने लगा है कि
हमारे देश के लोगों में सिविक सेंस
का अभाव है। हेल्थ और हाइजीन
को लेकर उनमें जागरूकता की
कमी है। ऐसा नहीं है कि यह चिंता
विदेशी सर्वेक्षणों से उपजी है। सर्वे
विदेशी सर्वेक्षणों से उपजी है। सर्वे
तो पहले भी होते ही रहे हैं , जिनमें
अक्सर हमें गंदा , पिछड़ा , भ्रष्टआदि बताया जाता है। इनसर्वेक्षणों के निष्कर्षों से विचलिततो हम पहले भी नहीं होते थे ,
घर का कूड़ा सड़क पर
अब जैसे लोग शहरों में सोसाइटी बनाकर रहने लगे हैं , लेकिन कूड़ा वे सड़क परही फेंकेंगे। पोंछे का गंदा पानी रास्ते पर ही डाल देंगे। जब चाहेंगे अपनी मर्जी सेजोर - जोर से गाना बजाने लगेंेगे। बारात निकलेगी तो लोग बीच सड़क पर हीडांस शुरू कर देंगे , इस बात की परवाह किए बिना कि दूसरों को कोई दिक्कत होरही है। सड़कें चौड़ी - चौड़ी बनने लगी हैं , लेकिन उन पर आधुनिक महंगीगाडि़यों में सवार लोग न तो लेन की परवाह करेंेगे , न गति सीमा की। पैदलयात्रियों को इससे कोई मतलब नहीं कि लाइट लाल है या हरी , वे जब चाहेंगेसड़क पार करना शुरू कर देंेगे। मेट्रो जैसी आधुनिक सुविधा लोगों को चाहिए ,लेकिन उनमें चढ़ने के लिए कतार में खड़े होने का धैर्य कोई नहीं दिखाता। हरकोई एक - दूसरे को धकिया कर आगे निकलने के चक्कर में रहता है। खुले मेंपेशाब करना , थूक फेंकना , नाक छिड़कना और फलों के छिलके , गुटकों के पाउचआदि कहीं भी फेंक देना तो आम बात है।
कॉमनवेल्थ गेम्स में आए मेहमानों ने जब खेलगांव के इंतजाम की आलोचना कीतो हमें बुरा लगा। कुछ अधिकारियों ने यह कह कर बचाव करने की कोशिश कीकि हाइजीन के उनके और हमारे मानकों में फर्क है। ठीक है कि भौगोलिक परिवेशमें भिन्नता के कारण कुछ चीजों में अंतर हो सकता है , लेकिन हमारा कोई तोमानक होगा। आखिर साफ - सफाई , यातायात , नागरिक जीवन का भारतीयमानक क्या है ? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।
स्वच्छता का अजेंडा
सच कहा जाए तो यह न तो सरकार के लिए , न ही समाज के लिए कोई बड़ाअजेंडा रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हमारे नेताओं ने सामाजिक जीवनके सवालों को राष्ट्रीयता से नहीं जोड़ा , जैसा कि अनेक विकासशील देशों में जोड़ागया। वियतनाम का उदाहरण लें। उसके नैशनल लीडर हो ची मिन्ह ने साफ -सफाई को राजनीतिक चेतना और देशभक्ति का एक अभिन्न अंग बनाया। खुद होची मिन्ह जब मौका मिलता , सड़कों पर झाड़ू लगाने निकल पड़ते थे। भारत मेंकेवल गांधी ने इस बात को महसूस किया था , लेकिन वह बेहतर नागरिक जीवनके अजेंडे को राजनीतिक मुक्ति के स्वप्न से जोड़ने में विफल रहे। वह कांग्रेस को इससवाल पर साथ नहीं ले पाए। कांग्रेस के लिए सामाजिक अजेंडा कभी महत्वपूर्णनहीं रहा। उसने इसे अपने कार्यक्रम के रूप में स्वीकार तो किया , पर इस परगंभीरता से अमल नहीं किया। पार्टी के ज्यादातर नेता गांधीजी की साफ - सफाईकी बातों को उनका स्टंट या उनकी निजी सनक ही मानते रहे।
आधुनिक दृष्टि के समर्थक नेहरू ने भी नागरिक जीवन के मुद्दे को महत्व नहींदिया। असल में उन्हें और दूसरे नेताओं को लगता रहा कि आजादी पाने के बादसब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। वह यह नहीं समझ पाए कि स्वतंत्रताहासिल करने के बाद राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए हमें एक बेहतर नागरिकसमुदाय की भी जरूरत पड़ेगी। कुछ और नेताओं को लगता रहा कि भारत जैसेगरीब देश के लिए तो पहले भूख मिटाना सबसे बड़ा मुद्दा है , सफाई और नागरिकजीवन की बात तो बाद में आती है। शायद इसलिए आजादी के बाद भीवामपंथियों या दूसरी धाराओं के जनांदोलन में भी इसे मुद्दा नहीं बनाया गया।
सरकार या दुश्मन
आजादी के आंदोलन के दौरान सत्ता से असहयोग और नियम तोड़ने को एकहथियार की तरह नेताओं ने इस्तेमाल किया। आजादी हासिल करने के बाद भीलोगों में इसकी स्मृति समाप्त नहीं हुई और कमोबेश आज भी बनी हुई है। सरकारको अपने शत्रु या खलनायक की तरह देखने का भाव आज भी जीवित है। नियमोंका उल्लंघन कहीं न कहीं उसी भाव की अभिव्यक्ति है। देश में जिस किसी कोअपनी कोई मांग मनवानी होती है , वह सबसे पहले सड़क जाम कर आमनागरिकों का चलना - फिरना मुश्किल बना देता है। उसके बाद वह सार्वजनिकसंपत्ति को अपना निशाना बनाता है। दुर्भाग्य से सरकारी एजेंसियां जनता काविश्वास अर्जित करने में विफल रही हैं। इस कारण उन्हें लोगों का सहयोग नहींमिल पाता।
संतुलित नागरिक जीवन के लिए जरूरी है कि नागरिकों में एक हद तक समानताका भाव भी हो , लेकिन भारत में जिस तरह जाति , प्रांत और धर्म की राजनीतिहुई है , उससे लोगों के जेहन में इतनी दीवारें खिंच गई हैं कि उनमें आपसीसहयोग की प्रवृत्ति विकसित नहीं हो पाती। उनमें आर्थिक और शैक्षिक असंतुलनभी है। शहरों में रहने वाले ज्यादातर नागरिक अपने साथ गांव की स्मृति लेकरआते हैं , जो उनके अचेतन में जड़़ जमाकर बैठी रहती है। वे मन में गांव का हीपावर स्ट्रक्चर ढोते रहते हैं।
गांव में साफ - सफाई या ट्रैफिक की वह समस्या नहीं है , जो शहरों में है। इसलिएशहरों के मापदंड से वे दिमागी तौर पर तालमेल नहीं बिठा पाते। हमने विकासका जो मॉडल चुन लिया है , उसका अभिन्न हिस्सा है - शहरीकरण। केवलइंफ्रास्ट्क्चर खड़ा करके ही शहर नहीं बसाया जा सकता। अर्बनाइजेशन के लिएनागरिकों को मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। लेकिन यह तभी संभव है ,जब पहले हमारा नेतृत्व वर्ग इसके लिए तैयार हो।
अब जैसे लोग शहरों में सोसाइटी बनाकर रहने लगे हैं , लेकिन कूड़ा वे सड़क परही फेंकेंगे। पोंछे का गंदा पानी रास्ते पर ही डाल देंगे। जब चाहेंगे अपनी मर्जी सेजोर - जोर से गाना बजाने लगेंेगे। बारात निकलेगी तो लोग बीच सड़क पर हीडांस शुरू कर देंगे , इस बात की परवाह किए बिना कि दूसरों को कोई दिक्कत होरही है। सड़कें चौड़ी - चौड़ी बनने लगी हैं , लेकिन उन पर आधुनिक महंगीगाडि़यों में सवार लोग न तो लेन की परवाह करेंेगे , न गति सीमा की। पैदलयात्रियों को इससे कोई मतलब नहीं कि लाइट लाल है या हरी , वे जब चाहेंगेसड़क पार करना शुरू कर देंेगे। मेट्रो जैसी आधुनिक सुविधा लोगों को चाहिए ,लेकिन उनमें चढ़ने के लिए कतार में खड़े होने का धैर्य कोई नहीं दिखाता। हरकोई एक - दूसरे को धकिया कर आगे निकलने के चक्कर में रहता है। खुले मेंपेशाब करना , थूक फेंकना , नाक छिड़कना और फलों के छिलके , गुटकों के पाउचआदि कहीं भी फेंक देना तो आम बात है।
कॉमनवेल्थ गेम्स में आए मेहमानों ने जब खेलगांव के इंतजाम की आलोचना कीतो हमें बुरा लगा। कुछ अधिकारियों ने यह कह कर बचाव करने की कोशिश कीकि हाइजीन के उनके और हमारे मानकों में फर्क है। ठीक है कि भौगोलिक परिवेशमें भिन्नता के कारण कुछ चीजों में अंतर हो सकता है , लेकिन हमारा कोई तोमानक होगा। आखिर साफ - सफाई , यातायात , नागरिक जीवन का भारतीयमानक क्या है ? इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।
स्वच्छता का अजेंडा
सच कहा जाए तो यह न तो सरकार के लिए , न ही समाज के लिए कोई बड़ाअजेंडा रहा है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हमारे नेताओं ने सामाजिक जीवनके सवालों को राष्ट्रीयता से नहीं जोड़ा , जैसा कि अनेक विकासशील देशों में जोड़ागया। वियतनाम का उदाहरण लें। उसके नैशनल लीडर हो ची मिन्ह ने साफ -सफाई को राजनीतिक चेतना और देशभक्ति का एक अभिन्न अंग बनाया। खुद होची मिन्ह जब मौका मिलता , सड़कों पर झाड़ू लगाने निकल पड़ते थे। भारत मेंकेवल गांधी ने इस बात को महसूस किया था , लेकिन वह बेहतर नागरिक जीवनके अजेंडे को राजनीतिक मुक्ति के स्वप्न से जोड़ने में विफल रहे। वह कांग्रेस को इससवाल पर साथ नहीं ले पाए। कांग्रेस के लिए सामाजिक अजेंडा कभी महत्वपूर्णनहीं रहा। उसने इसे अपने कार्यक्रम के रूप में स्वीकार तो किया , पर इस परगंभीरता से अमल नहीं किया। पार्टी के ज्यादातर नेता गांधीजी की साफ - सफाईकी बातों को उनका स्टंट या उनकी निजी सनक ही मानते रहे।
आधुनिक दृष्टि के समर्थक नेहरू ने भी नागरिक जीवन के मुद्दे को महत्व नहींदिया। असल में उन्हें और दूसरे नेताओं को लगता रहा कि आजादी पाने के बादसब कुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। वह यह नहीं समझ पाए कि स्वतंत्रताहासिल करने के बाद राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए हमें एक बेहतर नागरिकसमुदाय की भी जरूरत पड़ेगी। कुछ और नेताओं को लगता रहा कि भारत जैसेगरीब देश के लिए तो पहले भूख मिटाना सबसे बड़ा मुद्दा है , सफाई और नागरिकजीवन की बात तो बाद में आती है। शायद इसलिए आजादी के बाद भीवामपंथियों या दूसरी धाराओं के जनांदोलन में भी इसे मुद्दा नहीं बनाया गया।
सरकार या दुश्मन
आजादी के आंदोलन के दौरान सत्ता से असहयोग और नियम तोड़ने को एकहथियार की तरह नेताओं ने इस्तेमाल किया। आजादी हासिल करने के बाद भीलोगों में इसकी स्मृति समाप्त नहीं हुई और कमोबेश आज भी बनी हुई है। सरकारको अपने शत्रु या खलनायक की तरह देखने का भाव आज भी जीवित है। नियमोंका उल्लंघन कहीं न कहीं उसी भाव की अभिव्यक्ति है। देश में जिस किसी कोअपनी कोई मांग मनवानी होती है , वह सबसे पहले सड़क जाम कर आमनागरिकों का चलना - फिरना मुश्किल बना देता है। उसके बाद वह सार्वजनिकसंपत्ति को अपना निशाना बनाता है। दुर्भाग्य से सरकारी एजेंसियां जनता काविश्वास अर्जित करने में विफल रही हैं। इस कारण उन्हें लोगों का सहयोग नहींमिल पाता।
संतुलित नागरिक जीवन के लिए जरूरी है कि नागरिकों में एक हद तक समानताका भाव भी हो , लेकिन भारत में जिस तरह जाति , प्रांत और धर्म की राजनीतिहुई है , उससे लोगों के जेहन में इतनी दीवारें खिंच गई हैं कि उनमें आपसीसहयोग की प्रवृत्ति विकसित नहीं हो पाती। उनमें आर्थिक और शैक्षिक असंतुलनभी है। शहरों में रहने वाले ज्यादातर नागरिक अपने साथ गांव की स्मृति लेकरआते हैं , जो उनके अचेतन में जड़़ जमाकर बैठी रहती है। वे मन में गांव का हीपावर स्ट्रक्चर ढोते रहते हैं।
गांव में साफ - सफाई या ट्रैफिक की वह समस्या नहीं है , जो शहरों में है। इसलिएशहरों के मापदंड से वे दिमागी तौर पर तालमेल नहीं बिठा पाते। हमने विकासका जो मॉडल चुन लिया है , उसका अभिन्न हिस्सा है - शहरीकरण। केवलइंफ्रास्ट्क्चर खड़ा करके ही शहर नहीं बसाया जा सकता। अर्बनाइजेशन के लिएनागरिकों को मानसिक तौर पर तैयार करना होगा। लेकिन यह तभी संभव है ,जब पहले हमारा नेतृत्व वर्ग इसके लिए तैयार हो।
Tuesday, November 23, 2010
क्या खबर, क्या पता , क्या खुशी है, गम है क्या |
क्या खबर, क्या पता , क्या खुशी है, गम है क्या |
ले के अंशू जो खुशी दे , गम के बदले जो हंसी दे ,
राज यह जाना उसी ने जिन्दगी क्या है जिन्दगी |
कल की बातें भूल जा , गुजरी रातें भूल जा , ख्वाव जो सच हो सके ना उनकी यादें भूल जा .
जो ना हरे बेबसी से ना करे सिकवा किसी से
राज यह जाना उसी ने जिन्दगी क्या है जिन्दगी |
अपने दिल का दर्द ये उम्र भर हस के पिए जीना उसका जीना है जो औरों की खातिर जिए |
काम ले जिन्दादिली से, यूँ ही खेले जिन्द्जी से,
राज यह जाना उसी ने जिन्दगी क्या है जिन्दगी |
क्या खबर, क्या पता , क्या खुशी है, गम है क्या |
ले के अंशू जो खुशी दे , गम के बदले जो हंसी दे ,
राज यह जाना उसी ने जिन्दगी क्या है जिन्दगी |
कल की बातें भूल जा , गुजरी रातें भूल जा , ख्वाव जो सच हो सके ना उनकी यादें भूल जा .
जो ना हरे बेबसी से ना करे सिकवा किसी से
राज यह जाना उसी ने जिन्दगी क्या है जिन्दगी |
अपने दिल का दर्द ये उम्र भर हस के पिए जीना उसका जीना है जो औरों की खातिर जिए |
काम ले जिन्दादिली से, यूँ ही खेले जिन्द्जी से,
राज यह जाना उसी ने जिन्दगी क्या है जिन्दगी |
क्या खबर, क्या पता , क्या खुशी है, गम है क्या |
Friday, November 12, 2010
डा० उर्मिलेश जी को नमन .....हे शंखधार ................ तुम को प्रणाम है वारम्वार
बदायूं महोत्सव का भव्य उदघाटन आज !
वे वजह वोझ दिल में न सवारे रखिये ........
जिन्दगी एक जंग है इस जंग को जारी जारी रखिये .....
प्रसिद्ध रास्ट्रीय गीतकार स्व० डा० उर्मिलेश शंखधार जी ने बदायूं महोत्सव का सुभारम्भ कर जिले की प्रतिभाओं को एक नया मंच दिया जिससे की उनको आगे बढने का अवसर मिले .............
बदायूं महोत्सव-2010 का आयोजन डा० उर्मिलेश जी के सुपुत्र डा० अक्षत असेष जी के संयोजन में किया जा रहा है
हम भवन से कामना करते है की डा० अक्षत जी इस काम में विजय प्राप्त करें ....
आज डा० उर्मिलेश शंखधार जी हमारे बीच नही है
आओ आज हम सभी मिलकर बदायूं महोत्सव-2010
डा० उर्मिलेश शंखधार जी को , उनकी कला . वाणी , रस , देश प्रेम को समर्पित करते हैं ....
और डा० उर्मिलेश जी को नमन करते हुए आज के बदायूं महोत्सव अवसर पर स्मरण करते है ....
हे काव्य कंठ ............
हे गीतकार ..............
हे शंखधार ................
तुम को प्रणाम है वारम्वार ................
वे वजह वोझ दिल में न सवारे रखिये ........
जिन्दगी एक जंग है इस जंग को जारी जारी रखिये .....
प्रसिद्ध रास्ट्रीय गीतकार स्व० डा० उर्मिलेश शंखधार जी ने बदायूं महोत्सव का सुभारम्भ कर जिले की प्रतिभाओं को एक नया मंच दिया जिससे की उनको आगे बढने का अवसर मिले .............
बदायूं महोत्सव-2010 का आयोजन डा० उर्मिलेश जी के सुपुत्र डा० अक्षत असेष जी के संयोजन में किया जा रहा है
हम भवन से कामना करते है की डा० अक्षत जी इस काम में विजय प्राप्त करें ....
आज डा० उर्मिलेश शंखधार जी हमारे बीच नही है
आओ आज हम सभी मिलकर बदायूं महोत्सव-2010
डा० उर्मिलेश शंखधार जी को , उनकी कला . वाणी , रस , देश प्रेम को समर्पित करते हैं ....
और डा० उर्मिलेश जी को नमन करते हुए आज के बदायूं महोत्सव अवसर पर स्मरण करते है ....
हे काव्य कंठ ............
हे गीतकार ..............
हे शंखधार ................
तुम को प्रणाम है वारम्वार ................
Monday, November 8, 2010
पंडित ...... जीना है तो जाग जाओ
पंडित
इस शब्द में ज्ञान का सागर है
पूरा विश्व जनता है
हम सबसे आगे थे लेकिन पीछे हो रहें है
क्यूँ ?................
मैं मानता हूँ लापवाही है ....इस शब्द में ज्ञान का सागर है
पूरा विश्व जनता है
हम सबसे आगे थे लेकिन पीछे हो रहें है
क्यूँ ?................
किसी ने कहा है की जो लोग सिखर पर होते हैं लापवाही ला करते हैं वही हमने भी किया है
अब और लापवाही ठीक नही होगी जीना है तो जाग जाओ . अब भी मौका है अब तो लापवाही मत करो
सिखर की और देखो वो आप का इनजार कर रहा है ......
आज देश और धर्म की रक्षा के लिए ........
अपने समाज के स्वाभिमान के लिए हम सभी को साथ में मिलकर कुछ करना होगा आओ हम सभी शपथ लें की हम भी मिलकर अपने समाज को अपने लोगों को शीर्ष पर पहुंचाएंगे
देश , धर्म और अपने समाज के लिए हम पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कम करेंगे . हमारे लोग हमारे समाज के लोग जहाँ भी है हमसे जो भी संभव होगा हम उनकी मदद करेंगे
हम जो भी अपने समाज के लिए कर सकते है वो करेंगे
अपने समाज के उन लोगों को मदद देंगे जो कमजोर हैं गरीब हैं . हमारे समाज के जो युवा योग्य हैं और उनको भी सही जगह पहचाना भी हमारा कम होगा
अपने समाज को हम सभी को मिलकर हर सम्भव कम करना होगा ......
जय भागवान परशुराम .............
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