Friday, May 27, 2011

प्‍यार, दोस्‍ती, समर्पण मानव जीवन के परमार्थ जिंदगी के प्रयोजन के लिए है

प्‍यार, दोस्‍ती, समर्पण मानव जीवन के परमार्थ
जिंदगी के प्रयोजन के लिए है
प्‍यार हमें मौत से नहीं लेकिन जीवन को परिपूर्ण बनायेगा
मौत जीवन के लिए दीर्घ विराम
यहॉं आत्‍मा सौंदर्य को अपनाकर
अंधेरों से हमें उजाले की ओर ले जाती ।
जिंदगानिया चल रही है ये रवानिया चल रही है किस करिश्‍मों से
दुनिया चल रही है, गम के मारे लाखों सयाने भटक रहे हैं आवारा बनके
लेकिन कुदरत का करिश्‍मा कोई न जाने
यह सिलसिला सदियों से चल रहा
किसके करिश्‍मों से
ये दुनिया चल रही है
फूल और काटा
बाप और बेटा
चले रहे आशा निराशा की राह पर
अनजाने से है ये सब तमाशा
जीवन-मरण का ये कारवा चल रहा है
ये किसके करिश्‍मों से
यह दुनिया चल रही है
चल रही है ये जीवन की कश्‍ती
मकसद से न देखा किसीन ने यह रवैय्या ।
कैसे यह चक्‍कर चल रहा है
किस करिश्‍मों से यह दुनिया चल रही है
अजब है ये जीवन
गजब है यह दुनिया
न मंजिल है न ठिकाना
न मकसद न फसाना न
फिर किसके लिए यह कारवां चल रहा है
किस करिश्‍मों से यह दुनियां चल रही है

Tuesday, May 10, 2011

भारत तुझको नमस्कार है।


भारत तुझसे मेरा नाम है,
भारत तू ही मेरा धाम है।
भारत मेरी शोभा शान है,

भारत मेरा तीर्थ स्थान है।
भारत तू मेरा सम्मान है,
भारत तू मेरा अभिमान है।
भारत तू धर्मों का ताज है,
भारत तू सबका समाज है।
भारत तुझमें गीता सार है,
भारत तू अमृत की धार है।
भारत तू गुरुओं का देश है,
भारत तुझमें सुख संदेश है।
भारत जबतक ये जीवन है,
भारत तुझको ही अर्पण है।
भारत तू मेरा आधार है,
भारत मुझको तुझसे प्यार है।
भारत तुझपे जां निसार है,
भारत तुझको नमस्कार है।

Tuesday, March 22, 2011

मैंने मौत को बहुत नजदीक से देख लिया है ! मै अपने यह अनुभव आप सभी को बताना चाहता हूँ !


मौत से मुलाकात हुई है मेरी ! मैंने मौत को बहुत नजदीक से देख लिया है ! 
मै अपने यह अनुभव आप सभी को  बताना चाहता हूँ !
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बात 17  मार्च 2011  की है ,  इस दिन छोटी "होली" थी ! मै रात में 12  बजे अपनी "बुलट" मोटर साईकिल से बदायूं से बीसलपुर को चल दिया था ! मेरा छोटा भाई मोटर साईकिल चला रहा था , मै और मेरा एक मिलने बाला पीछे बैठे थे ! रात में करीब 2 बजे बरेली पार करने बाद मोटर साईकिल 80 -90  की स्पीड से रोड के किनारे २० फिट गहरी खाई में जा गिरी ! रात में करीब 2 बजे हमारे आसपास कोई नही था जो कोई मदद करे ! हम लोग बहुत संकट में थे ! क्या करें क्या न करें ! मोटर साईकिल का हेंनडल टूट चुका था ! रात में करीब 2 बजे सिर्फ सननाटा था ! मौत हमारे बहुत नजदीक से गुजरी थी !
मोटर साईकिल जहाँ गिरी थी वहाँ पर कैलासो नदी थी ! रात में करीब 2 बजे हमारे आसपास कोई नही था मोटर साईकिल को कैसे निकला जाये !!!!! लेकिन हम लोग हिम्मत नही हारे करीब 1  घंटे में मोटर साईकिल को निकाल ही लिया ! भागवान ने मेरी और मेरी भाई की रक्षा की !!!!! मोटर साईकिल में बहुत नुकसान हुआ !
हम लोग सुबह को करीब ४ बजे बीसलपुर पहुचे ! अपने मामा के घर बो लोग भी दंग रह गये ! उस समय तो हम लोग सो गये ! सुबह जब ९ कट्स सो कर उठे तो देखा की  साईकिल का हेंनडल टूट चुका था ! पता नही कैसे हम लोग बीसलपुर मामा के घर तक आ गये ! हम लोग को चोट भी लगी लेकिन बच ही गये ! 
यह मेरी एक बहुत बड़ी गलती थी , मुझे रात में नही जाना चाहिये था !
मै इसको अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती मानता हूँ !

Thursday, March 10, 2011

क्यों और कैसे किए जाते हैं 16 संस्कार


गर्भाधान संस्कार- यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान के लिए गर्भधारण किस प्रकार करें इसका विवरण दिया गया है। इस संस्कार से कामुकता का स्थान अच्छे विचार ले लेते हैं। यह वैज्ञानिक स्तर पर भी साबित किया जा चुका है। पुंसवन संस्कार- यह संस्कार गर्भधारण के दो-तीन महीने बाद किया जाता है। मां अपने गर्भस्थ शिशु की ठीक से देखभाल करने योग्य बनाने के लिए यह संस्कार किया जाता है। पुंसवन संस्कार के दो प्रमुख लाभ- पुत्र प्राप्ति और स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान है। सीमन्तोन्नयन संस्कार- यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्च सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म आएं, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है। भक्त प्रह्लाद और अभिमन्यु इसके उदाहरण हैं। जातकर्म संस्कार- बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से गर्भस्त्रावजन्य दोष दूर होते हैं। नालछेदन के पूर्व अनामिका अंगूली (तीसरे नंबर की) से शहद, घी और स्वर्ण चटाया जाता है। नामकरण संस्कार- जन्म के बाद ११वें या सौवें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। ब्राrाण द्वारा ज्योतिष आधार पर बच्चे का नाम तय किया जाता है। बच्चे को शहद चटाकर सूर्य केदर्शन कराए जाते हैं। उसके नए नाम से सभी लोग उसके स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। निष्क्रमण संस्कार- निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। अन्नप्राशन संस्कार- गर्भ में रहते हुए बच्चे के पेट में गंदगी चली जाती है, उसके अन्नप्राशन संस्कार बच्चे को शुद्ध भोजन कराने का प्रसंग होता है। बच्चे को सोने-चांदी के चम्मच से खीर चटाई जाती है। यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात ६-७ महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है। मुंडन संस्कार- बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे वपन क्रिया संस्कार, मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। इससे बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। कर्णवेध संस्कार इसका अर्थ है- कान छेदना। परंपरा में कान और नाक छेदे जाते थे। यह संस्कार जन्म के छह माह बाद से लेकर पांच वर्ष की आयु के बीच किया जाता था। यह परंपरा आज भी कायम है। इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। उपनयन संस्कार उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। बालक को जनेऊ पहनाकर गुरु के पास शिक्षा अध्ययन के लिए ले जाया जाता था। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रrा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। फिर हर सूत्र के तीन-तीन सूत्र होते हैं। ये सब भी देवताओं के प्रतीक हैं। आशय यह कि शिक्षा प्रारंभ करने के पहले देवताओं को मनाया जाए। जब देवता साथ होंगे तो अच्छी शिक्षा आएगी ही। विद्यारंभ संस्कार जीवन को सकारात्मक बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है। शिक्षा का शुरू होना ही विद्यारंभ संस्कार है। गुरु के आश्रम में भेजने के पहले अभिभावक अपने पुत्र को अनुशासन के साथ आश्रम में रहने की सीख देते हुए भेजते थे। केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करे। समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम में शिक्षा प्राप्ति के बाद ब्रrाचारी को फिर दीन-दुनिया में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रrाचारी को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षो के लिए तैयार करना। विवाह संस्कार  यानी विशेष रूप से, वहन यानी ले जाना। विवाह का अर्थ है पुरुष द्वारा स्त्री को विशेष रूप से अपने घर ले जाना। सनातन धर्म में विवाह को समझौता नहीं संस्कार कहा गया है। यह धर्म का साधन है। दोनों साथ रहकर धर्म के पालन के संकल्प के साथ विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है। विवाहाग्नि संस्कार विवाह के पहले तक पिता द्वारा जलाई गई अग्नि में आहूति दी जाती थी। विवाह के साथ ही व्यक्ति स्वयं अपनी अग्नि घर में प्रज्‍जवलित करता था। पति-पत्नी दोनों सुबह, दोपहर और शाम को इसमें घी और दूध की आहूति देते थे। विवाह के बाद अपनी अलग अग्नि जलाने का अर्थ है अपना अलग चूल्हा करना। यानी अपनी जिम्मेदारियां स्वयं उठाना। आज भी घर का बंटवारा होने का मतलब दो चूल्हे होना लिया जाता है। अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम यज्ञ। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है। मृत्यु के साथ ही व्यक्ति स्वयं इस अंतिम यज्ञ में होम हो जाता है। हमारे यहां अंत्येष्टि को इसलिए संस्कार कहा गया है कि इसके माध्यम से मृत शरीर नष्ट होता है। इससे पर्यावरण की रक्षा होती है।

Friday, February 25, 2011

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा संकट हिंदू ही झेल रहे हैं।

पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा संकट हिंदू ही झेल रहे हैं। मानवाधिकार संबंधी एक नई रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश, पाकिस्तान, मलेशिया और सऊदी अरब सहित दुनियाभर के कई देशों में रहने वाले हिंदू रोजाना भेदभाव, पीड़ा और खतरे के साए में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
स्वयंसेवी संगठन ‘हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन’ (एचएएफ) द्वारा आज यहां जारी की गई ‘दक्षिण एशिया और विदेशों में हिंदू: मानवाधिकार सर्वे 2007’ नामक इस रिपोर्ट में दस देशों में हिंदुओं के जीवन स्तर का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश में सरकार बदलने के बावजूद वर्ष 2007 के पहले छह महीनों में हिंदुओं की हत्या, बलात्कार और मंदिर तोड़ने जैसी 270 घटनाएं दर्ज की गई हैं। वहीं पाकिस्तान में भी हिंदुओं के खिलाफ बंधुआ मजदूरी, अपहरण और महिलाओं के जबरन धर्म परिवर्तन जैसे कई अपराध घटित हुए हैं।
रिपोर्ट को जारी किए जाने के अवसर पर सीनेटर फ्रैंक आर. लाउटेनबर्ग ने कहा, “हम सभी के मूल्य एक समान हैं। हमें सभी लोगों उनकी संस्कृतियों और आस्थाओं का सम्मान करना चाहिए लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि अभी भी ढेरों कमियां मौजूद हैं”। रिपोर्ट लॉन्गवुड विश्वविद्यालय में संचार विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर रमेश राव के नेतृत्व में तैयार की गई।
हिंदुओं पर अत्याचार के मलेशिया में तमाम उदाहरण है। मसलन मलेशिया के पेराक राज्य के तूपाह एस्टेट में रहने वाले तमिल हिंदुओं ने श्मशान भूमि को कृषि भूमि में परिवर्तित कर दिए जाने का विरोध किया है। विरोध के लिए उन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन का सहारा लिया। एस्टेट में रहने वाले एम. मरिमुथु ने दावा किया कि भारतीय समुदाय पिछले 90 सालों से इस भूमि का प्रयोग अपने लोगों के अंतिम संस्कार के लिए कर रहा था। उन्होंने कहा, “कुछ गैरजिम्मेदार किस्म के लोगों ने जमीन पर कब्जा कर लिया है और उसके मालिकाना हक का दावा करने लगे हैं”।

नेपाल तो अब हिंदू राष्ट्र रहा नहीं और मलेशिया में हिंदुओं पर कानूनी अत्याचार भी थमा नहीं है जबकि ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर के नेलसन इलाके के नागरिकों ने स्वामी नारायण संस्था द्वारा प्रस्तावित एक हिन्दू मंदिर के निर्माण का विरोध किया गया। स्थानीय लोगों का तर्क है कि मंदिर के निर्माण के कारण इस क्षेत्र में पार्किग और इमारतों का डिजाइन प्रभावित होगा। इससे पहले इस इलाके में एक मुस्लिम स्कूल के खिलाफ भी लोग एकजुट हो गए थे। संस्था के ट्रस्टी करसन कराई ने बताया कि दरअसल लोग हिन्दू मंदिर को लेकर भ्रमित हैं और फिजूल के सवाल उठा रहे हैं। इस इलाके में हिन्दू मंदिर के निर्माण से स्थानीय सुविधाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

संस्था ने 10 लाख ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की लागत से इस इलाके में एक हिन्दू मंदिर के निर्माण की योजना बनाई है, लेकिन स्थानीय नागरिक मंदिर के डिजाइन और पार्किंग को लेकर इसका विरोध कर रहे है।इससे पहले स्वामी नारायण संस्था कई देशों में भव्य मंदिरों का निर्माण कर चुकी है। गौरतलब है कि लंदन के नेस्डन इलाके में बनाया गया हिन्दू मंदिर ब्रिटिश हिन्दूओं में काफी लोकप्रिय है। हॉल ही में इस संस्था ने अटलांटा और टोरंटो में भी भव्य हिन्दू मंदिरों का निर्माण किया है। 

Tuesday, February 15, 2011

आरुषि हत्याकांड : कमजोर हुई सीबीआई

सारी जांच एजेंसियों के बाद केंद्रीय जांच ब्यूरो के हाथ खड़े करने के बावजूद अदालत ने अगर आरुषि हत्याकांड मामले को जिंदा रखा है, तो यह स्वागतयोग्य फैसला है। जांच एजेंसियों के घालमेल और मुजरिमों की अत्यधिक चालाकी से मामला जरूर ऐसी जगह पहुंच गया है कि हत्यारों की पहचान और सजा देना आसान नहीं रहेगा, लेकिन जिस तरह से सीबीआई मामले को रफा-दफा करने जा रही थी, वह तो और भी गलत था। ब्यूरो ने अपनी जांच से शक की सूई तलवार दंपति की तरफ मोड़कर भी यही कह दिया कि वह जांच आगे बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। ब्यूरो और उसके पहले उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा बार-बार रुख बदलने और जांच की दिशा उलटने-पलटने से केस कमजोर जरूर हो गया है।

तलवार दंपति ने भी जाने-अनजाने काफी सारे सुबूत मिटाए और उनकी सूचना पर जांच ‘गुमराह’ भी हुई। कई बार तो साफ लगा कि अपने नौकर हेमराज के साथ पड़ोस के तीन नौकरों को फंसाने का प्रयास किया गया। पर अब अदालत के फैसले के बाद ये तीनों चैन की सांस ले सकेंगे और उनके ऊपर आई कालिख भी काफी हद तक धुल गई है। उन लोगों के दोषी या निर्दोष होने का मसला भी बड़ा था, लेकिन मुख्य बात इस 14 वर्षीय किशोरी की मौत की है। उसकी मौत और जांच के सारे प्रकरण को दोहराने की जरूरत नहीं है, लेकिन जिन नौ मुद्दों को अदालत ने महत्वपूर्ण मानकर मुकदमा चलाने लायक माना है, वे पर्याप्त वजनदार हैं। इनके आधार पर सुबूत नष्ट करने, अपराध के लिए साजिश रचने जैसे मामले तो ठहरेंगे ही और फिर हत्या के पीछे की मंशा भले अस्पष्ट लगे, हत्या का मामला बनेगा ही, क्योंकि कोई यों ही सुबूत नष्ट नहीं करेगा।

यह काम उस लड़की के यौनांगों की सफाई से लेकर कमरे की सफाई, खून लगे कपड़े हटाने, मोबाइल से सूचनाएं निकालने तक गया है। जांच की दिशा को भटकाने का मामला अपनी जगह है। अब ये आधार किसी को सजा दिलाने और आरुषि मामले में न्याय दिलाने का आधार बनेंगे या नहीं, यह कहना जल्दबाजी होगा। पर अदालत के ताजा फैसले के बाद चीजें वापस पटरी पर आई हैं। सीबीआई भले ही इसे अपनी ‘जीत’ बताए, असल में यह उसके कामकाज पर एक गंभीर टिप्पणी है और उसे नए सिरे से जांच और अदालती कामकाज को अंजाम तक पहुंचाने के लिए लगना होगा। अब उसके लिए कोई अगर-मगर करना भी मुश्किल होगा, क्योंकि सारे मुल्क की निगाहें उस पर लगी हुई हैं। तलवार दंपती के लिए बचाव के सारे रास्ते बंद हो गए हों या वे ही अपनी बेटी के हत्यारे घोषित हो गए हों, यह मानना गलत होगा। पर इसमें कोई शक नहीं कि अब उन लोगों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं।

Wednesday, January 12, 2011

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है-------------------------------

स्वामी विवेकानंद जी  ने कहा है--------------------------------


"पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।' ध्यान के द्वारा ही हम इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। शम, दम और तितिक्षा अर्थात मन को रोकना, इन्द्रियों को रोकने का बल, कष्ट सहने की शक्ति और चित्त की शुद्धि तथा एकाग्रता को बनाए रखने में ध्यान बहुत सहायक होता है।"



"मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।"



"जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।"



"जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।"



"आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।"



"मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।"



"हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।"



"मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।"



"पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।"


"सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।"



"संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।"